Article-370
आर्टिकल-370 केवल एक कानूनी प्रावधान नहीं था, बल्कि यह जम्मू और कश्मीर की आत्मा, उसकी पहचान, और उसकी स्वतंत्रता का प्रतीक था। यह उस कश्मीर की कहानी है, जो अपने अधिकारों, अपनी सांस्कृतिक धरोहर और अपने स्वायत्तता की रक्षा के लिए सदियों से संघर्ष करता आया है।

कश्मीर के लोग इस धारा के तहत अपनी अलग पहचान जीते थे। आर्टिकल-370 ने उन्हें वह विशेष दर्जा दिया था, जो उन्हें भारत के बाकी हिस्सों से अलग करता था, लेकिन एक सम्मानजनक तरीके से। यह एक गहरी भावना थी, जो उनके दिलों में बसी हुई थी—उनकी पहचान, उनकी संस्कृति, उनके रीति-रिवाज, और उनके स्वायत्तता का प्रतीक।
लेकिन जब से इसे रद्द किया गया, यह एक दर्दनाक जख्म बनकर उभर आया है। यह सिर्फ एक कानूनी बदलाव नहीं था, बल्कि कश्मीर की आत्मा को चुराने जैसा था। लोग सिर्फ अपनी विशेष स्थिति को खो नहीं रहे थे, बल्कि उनका वह हिस्सा खो रहा था, जो उन्हें अपने घर और अपने राज्य से जोड़े रखता था।
जब यह धारा खत्म हुई, तो कश्मीर के दिल में एक गहरी उदासी फैल गई, जैसे किसी ने अचानक उनका भरोसा तोड़ दिया हो। उनका दर्द सिर्फ एक राजनीतिक फैसले से नहीं, बल्कि उस पहचान के मिटने से था, जिसे उन्होंने सदियों से संजोकर रखा था।
आज भी कश्मीर में वही सवाल गूंज रहा है: क्या यह फैसला कश्मीर की सच्ची पहचान और आत्मा को खत्म कर सकता है? क्या कश्मीरियों को उनकी वह पहचान कभी लौट सकती है, जिसे Article-370 ने उन्हें सौंपा था? यह सवाल न केवल एक कानूनी बदलाव के बारे में है, बल्कि यह दिलों में बसी भावनाओं और रिश्तों का मामला है, जो अब एक बड़े संकट में हैं।
आर्टिकल-370 का अंत एक ख्वाब के टूटने जैसा था—एक ख्वाब जो कश्मीरियों ने अपने अस्तित्व और सम्मान के लिए देखा था।